भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहां बच्चों को विदेशी भाषा में पढ़ाया जाता है
नई दिल्ली,आंध्र प्रदेश सरकार के कक्षा एक से छह तक के सभी सरकारी स्कूलों में अंग्रेजी माध्यम अनिवार्य बनाने के आदेश को रद करने संबंधी हाई कोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाने से इन्कार कर दिया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि नींव के लिए बच्चों का मातृभाषा में सीखना जरूरी है।
और यही प्रधान शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 में भी कहा गया है कि 1 से लेकर के आठवीं के कक्षा तक के सभी बच्चों को उसके मातृभाषा में ही शिक्षा दिया जाए आगे
प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी. रामासुब्रमणियन की पीठ के समक्ष आंध्र प्रदेश की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता केवी विश्वनाथन ने कहा कि हाई कोर्ट का आदेश गरीब और वंचित वर्ग को प्रभावित करता है। उन्होंने एक सर्वे के हवाले से कहा कि 96 फीसद माता-पिता अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाना चाहते हैं।
इस पर पीठ ने कहा कि भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहां बच्चों को विदेशी भाषा में पढ़ाया जाता है और निर्देशों के माध्यम को लेकर विशेषज्ञों में भी मतभेद है। विश्वनाथन ने जोर देकर कहा कि जीवन में आगे बढ़ने और अवसरों के लिए अंग्रेजी भाषा जरूरी है। अगर व्यक्ति अंग्रेजी भाषा में दक्ष है तो उसके लिए अवसरों की कोई सीमा नहीं है। उन्होंने कहा कि वह तमिलनाडु के ऐसे वकील मित्रों को जानते हैं जिन्होंने मातृभाषा में पढ़ाई की और अब उन्हें शीर्ष अदालत में बहस करने में परेशानी होती है क्योंकि वे मातृभाषा में ही सोचते हैं।
इस दलील पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि इस मामले में यह उदाहरण उचित नहीं है और बच्चों की नींव के लिए उनका मातृभाषा में सीखना जरूरी है। विश्वनाथन ने कहा, उनका मतलब था कि अंग्रेजी में दक्षता का अभाव तब एक मुद्दा हो सकता है जब अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई करने वालों से तुलना की जाती है। उन्होंने अदालत को सूचित किया कि तेलुगु माध्यम से पढ़ने का विकल्प छीना नहीं गया है। पीठ ने कहा कि वह राज्य सरकार की अपील पर अगले हफ्ते सुनवाई करेगी।
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