Monday 5 October 2020

मोदी सरकार के नए कानून से कर्मचारियों पर बरसेगा कहर अब स्थाई से होंगे अस्थाई (कॉन्ट्रैक्ट)

 मोदी सरकार के नए कानून से कर्मचारियों पर बरसेगा कहर अब स्थाई से होंगे अस्थाई (कॉन्ट्रैक्ट)



आए दिन मोदी सरकार द्वारा कभी कर्मचारियों पर तो कभी किसानों पर तो कभी जात पात के नाम पर लोगों को परेशान किया जा रहा है कोरोना महामारी के दौरान करोड़ों लोग अपनी नौकरी के गवा चुके हैं उसी दौरान लोगों को नौकरी की जरूरत है तो मोदी सरकार एक के बाद एक नौकरियों को खत्म कर रही है तो वही मोदी सरकार के नए कानून से कंपनियों में काम कर रहे श्रमिकों को जो कि स्थाई रूप से कार्य कर रहे थे उनको अस्थाई करने के लिए कानून बनाया है जेके हास्यास्पद है

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के फैसलों से किसानों के बाद नौकरीपेशा लोगों के रोजगार की सुरक्षा पर भी सवाल उठ खड़ा हुआ है। केंद्र सरकार द्वारा हाल में मंजूर किए गए इंडस्ट्रियल रिलेशंस कोड 2020 के तहत कंपनियां स्थायी नौकरियों को फिक्स्ड कांट्रेक्ट टर्म में तब्दील कर सकती हैं।

मोदी सरकार ने पिछले सप्ताह इस कानून की अधिसूचना जारी की है जिससे कंपनियों को कर्मचारियों की जिम्मेवारी को लेकर बड़ी राहत मिली है, लेकिन कर्मियों की नौकरियां असुरक्षित हो गई हैं।

अब कंपनियां फिक्स्ड टर्म कांट्रेक्ट जाॅब के लिए सीधे तौर पर कर्मचारियों को नियुक्त कर सकती हैं। अब तक कंपनियों को इसके लिए कांट्रेक्टर्स का सहारा लेना पड़ता था।

अब डायरेक्ट कंपनियां द्वारा ऐसी भर्तियां करने से कंपनियों के खर्च में कमी आएगी।

नए नियम के अनुसार, फिक्स्ड टर्म कांट्रेक्ट कर्मियों को स्थायी कर्मियों की तरह सभी सुविधाएं मिलेंगी, हालांकि कंपनियां उन्हें कभी नौकरी से बाहर कर सकती हैं और ऐसा करने पर उन्हें स्थायी कर्मचारियों की तरह सुविधाएं या मुआवजा नहीं मिलेगी।

इससे कंपनियां जाॅब सिक्यूरिटी की जिम्मेवारी से तो मुक्त रहेंगी ही साथ ही उनका वित्तीय फायदा भी होगा।

यह कानून सरकार की ओर से मार्च 2018 में लागू किए गए कानून से अलग है। उस कानून में कहा गया था कि कोई भी कंपनी स्थायी कर्मचारियों के पदों को फिक्स्ड टर्म एंप्लायमेंट में तब्दील नहीं कर सकती है। नए कानून में ऐसा कोई नियम नहीं है।

विशेषज्ञों का मानना है कि इससे भविष्य में बाजार में निजी सेक्टर में स्थायी नौकरियों की कमी देखने को मिलेगी। सरकार ने कांट्रेक्ट की सीमा नहीं रखी है और न ही यह उल्लेख है कि उसे कितनी बार रिन्यू किया जा सकता है।

फिक्स्ड टर्म एंपलायमेंट की शुरुआत यूरोप में 2000 में हुई थी, लेकिन वहां इसे स्थायी नौकरी की ओर एक कदम माना गया था, यहां स्थिति इससे विपरीत है। अब ऐसे कर्मचारी स्थायीकरण की ओर नहीं बढ सकेंगे। एक सर्वे के अनुसार, भारत में 4.2 प्रतिशत कर्मचारी ऐसे हैं जो सम्मानजनक नौकरी की स्थिति में हैं।



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