हमें उम्मीद है कि चार जजों की प्रेस कॉन्फ्रेंस पहली व आखिरी थी : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना के दोषी प्रशांत भूषण की उस दलील को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने पूर्व और मौजूदा जजों के खिलाफ की गई आपत्तिजनक टिप्पणी को सही ठहराने के लिए 12 जनवरी 2018 को चार वरिष्ठतम जजों की प्रेस कॉन्फ्रेंस का हवाला दिया था।
जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने अपने फैसले में कहा है कि हमें उम्मीद है कि जनवरी 2018 की प्रेस कॉन्फ्रेंस पहली और आखिरी थी।उस प्रेस कॉन्फ्रेंस में जजों के निशाने पर जस्टिस मिश्रा भी थे क्योंकि चारों जजों ने महत्वपूर्ण व संवेदनशील मामलों को किसी खास पीठ के पास सूचीबद्ध करने को लेकर भी सवाल उठाए थे।
जस्टिस रंजन गोगोई ने मुंबई के जज बीएच लोया के मामले को जस्टिस अरुण मिश्रा के पास भेजे जाने का भी जिक्र किया था।
हालांकि बाद में जस्टिस मिश्रा ने खुद को इस मामले से अलग कर लिया था
भूषण को एक रुपये का जुर्माना करने के अपने फैसले में पीठ ने कहा कि सच्चाई न्यायाधीशों के लिए भी रक्षा हो सकती है, लेकिन वे अपने न्यायिक मानदंडों, नैतिकता और आचार संहिता से बंधे हैं। इसी तरह वकीलों पर भी आचार संहिता समान रूप से लागू होती है, क्योंकि वे भी इस सिस्टम का हिस्सा है।
पीठ ने कहा है कि न्यायाधीशों को अपने निर्णयों द्वारा अपनी राय व्यक्त करनी होती है। वे सार्वजनिक बहस में हिस्सा नहीं ले सकते हैं और न ही प्रेस के पास जा सकते हैं। उन पर कोई भी आरोप लगाना बहुत आसान है। न्यायाधीशों को इस तरह के आरोपों पर चुप्पी साधनी पड़ती है। वे आरोप पर सार्वजनिक प्लेटफॉर्मों, समाचार पत्रों या मीडिया में जवाब नहीं दे सकते।
पीठ ने कहा है कि अगर न्यायाधीशों पर तीखा हमला किया जाता है, तो उनके लिए निडर होकर और मुद्दों पर सही दृष्टिकोण रखते हुए निष्पक्षता के साथ काम करना मुश्किल हो जाएगा। फैसले की आलोचना की जा सकती है लेकिन न्यायाधीशों की मंशा पर सवाल नहीं उठाया जाना चाहिए।
उसी तरह, सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को भी गरिमा के साथ जीने का अधिकार है और उनसे यह उम्मीद नहीं की जानी चाहिए कि वे प्रत्येक आरोपों का जवाब दें और सार्वजनिक बहस में शामिल हों।
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